घृत अमृत

घृत अमृत

जिस प्रकार शुद्ध घी आयुर्वेद के अंतर्गत व्यक्त किये गये त्रिदोषों (वात्, पित्त एवं कफ़) के निवारण में लाभकारी है, उसी प्रकार यह आयुर्वेदानुसार व्यक्त किये गये त्रिगुणों (सत्व, रज एवं तम) में सर्व श्रेष्ठ गुण, यानि सत्व गुण का स्वामि है। शुद्ध घी में पका हुआ भोजन सात्विक माना जाता है और मानव के विकास में विशेष भूमिका रखता है । आम तौर पर कहा जाता है,जैसा भोजन, वैसा चाल चलन । सात्विक भोजन मानव में सात्विक प्रवृत्तियाँ प्रदान करता है, जिसका प्रमुख आधारशुद्ध घी माना जाता है । यही कारण है कि शुद्ध घी का सेवन मानव के आध्यात्मिक विकास में भी अत्यंत महत्व रखता है । मानव की मनोवृत्तियाँ उसके द्वारा ग्रहण करे गये आहार पर विशेष रूप से निर्भर रहती हैं, इसीलिऐ, शुद्ध घी का सेवन न केवल शारीरिक और मानसिक विकास के लिऐ अनिवार्य है, अपितु आध्यातमिक उत्थान के लिऐ भी आवश्यक है ।

शुद्घ घी की गुणवत्ता के कारण ही, हर धार्मिक एवं आध्यात्मिक अनुष्ठान करते समय हम शुद्ध घी का उपयोग करते हैं । घर में घी का दीपक जलाने से, मान्यता है कि वातावरण शुद्ध होता है । हर पूजन में नैवेद्य जो प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है, शुद्ध घी में पकाया जाता है, चरणामृत बनाने में भी शुद्ध घी की आवश्यकता होती है, हवन में भी शुद्ध घी से अग्नि प्रज्वलित की जाती है और आहुतियाँ दी जाती हैं ।

शुद्ध घी के अनेकों उपयोग हैं, जो मानव के मानसिक, शारीरिक एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिऐ आवश्यक  हैं । उत्कृष्ट जीवन व्यतीत करने हेतु नित्य़ नियमित रूप से शुद्ध घी का सेवन अति गुणकारी व लाभकारी   है । शुद्घ घी का सेवन अवश्य आपनाइये और हृष्ट पुष्ट शरीर, में स्वस्थ मन, विकार रहित पाईये ।

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