प्रोवेदिक शुद्ध घी

प्रोवेदिक शुद्ध घी

शुद्ध दूध से बना प्रोवेदिक शुद्ध घी का कर उपयोग,हृष्ट पुष्ट शरीर, सुखद् एवं स्वस्थ,जीवन व्यतीत करने का सरल मार्ग अपनाईये । यद्यपि, शुद्ध घी का सेवन करते हुऐ आजकल लोग कतराते है, किन्तु यह उनकी  नासमझी है । बास्तव में शुद्ध घी का सेवन अत्यंत गुणकारी माना गया है । आयुर्वेद के धनवंत्रियों ने शुद्ध घी को अमृत तुल्य संजवनी का स्थान दिया है । आयुर्वेदानुसार मानव शरीर, जो पंचतत्वों से निर्मित है, तीन प्रकार के तत्व दोषों से पीड़ित होता है, जो हैं, वात दोष (वायु तत्व) पित्त दोष (अग्नि तत्व) व कफ़ दोष (धरती व जल तत्व) । जब कभी भी इन तत्वों मे विकार उत्पन्न होता है अथवा असंतुलन होता है तब शरीर या मन रोग से पीड़ित हो जाता है । इस प्रकार के रोगों का विरोध करने में भी शुद्ध घी का सेवन अत्यंत सहायक व लाभकारी होता है ।सही मात्रा में नित्य प्रति दिन, नियमित रूप से घी का सेवन करने से शारीरिक एवं मानसिक स्वास्थ् में निश्चित ही वृद्धि होती है, एवं मानसिक व शारीरिक विकास उत्तम होता है । शुद्ध घी में रोग प्रतिरोधक गुण अनंत हैं । मानव हृष्ट पुष्ट बनाऐ रखने में शुद्ध घी का सेवन विशेष भूमिका रखता है, जो स्वस्थ जीवन व्यतीत करने के लिऐ अनिवार्य है ।

शुद्ध घी, जितने भी अन्य चिकनाई एवं वसा युक्त तेल हैं, उन सब में सर्व अधिक लाभकारी है, क्योंकि इसकी चिकनाई अत्यंत सहजता से महीन कोशिकाओं तक पहुँच कर उनका पोषण करती है । सहज रूप से आत्मसात हो जाती है, यही कारण है कि शुद्ध घी को न केवल आहार के रूप में ग्रहण किया जाता है, वरन् मालिश के तेल, औषधिक उपचार के लेप और मलहम के बनाने में भी उपयोग किया जाता है । नवजात् शिशु की मालिश से लेकर आधुनिक स्पा में भी शुद्ध घी का उपयोग आम तौर पर व्यस्कों और वृद्धों पर होता है । शुद्ध घी का सेवन चिकनाई व ओज प्रदायक है, जिसकी आवश्यकता शरीर और मन दोंनों को होती है।

शुद्ध घी में पका भोजन न केवल स्वादिष्ट व पौष्टिक होता है, वरन् पाचन सहज रूप में करने में सहायक होता हैं । शरीर के सभी तंत्र सुचारू रूप से चलते हैं व शरीर में शक्ति एवं बल का  संचार होता है। शुद्ध घी का सेवन पुरूषों में शुक्र वर्धन, बल व क्षमता में वृद्धि करता है, नारियों में प्रजननतंत्र को पुष्ट करता है ।

अन्य कर्मेंद्रियों के लिऐ भी घृत अत्यंत लाभकारी है, नेत्रों की ज्योतिबढ़ाता है,कानों की श्रवण शक्ति बनी रहती हैं, श्वास प्रणाली को स्वस्थ रखता है एवं त्वचा को सुन्दर, चिकना, ओज पूर्ण बनाता है । चर्म रोगों  अनेक औषधियों व लगाने वाले मलहम व लेपों में शुद्ध घी का उपयोग किया जाता है । जिनकी तवचा सूखी है,उनके लिऐ विशेष लाभकारी है। शुद्ध घी रसायन स्वास्थ्य वर्धक व आरोग्य प्राप्ति में विशेष गुणकारी व लाभकारी है । बालों कों स्वस्थ रखता है व उनके झड़नें में बाधक है । शुद्ध घी के नियमित सेवन से शरीर सुन्दर, स्वस्थ व सुडौल रहता  है ।

भोजन पकाने का ही नहीं, वरन औषधि निर्माण हेतु भी शुद्ध घी को एक सहज आघार माना गया है । बहुत ही सहजता से घी में मिश्रित औषधि शरीर के किसी भी अंग तक प्रवाहित हो जाती है व उसका आत्सात हो जाता है, बहुत सी दवाओं को बनाने में शुद्ध घी का रासायनिक उपयोग अनिवार्य है । कुछ औषधियाँ जो कितासीर में गर्म होतीं हैं, उनको शुद्ध घी में मिश्रित कर उपयोग में लाया जाता है, और अति सरल रूप से इसका शरीर में आत्सात हो जाता है ।

शुद्ध घी के सेवन की गुणवत्ता का जितना विवरण करे कम है । इसकी आवश्यकता नवजात् शिशु से लेकर वृद्ध होने तक हर आयु के मानव को होती है, केवल शरीर में आंतरिक ग्रहण करने हेतु ही नहीं वरन् बाहरी सेवन व उपचार में भी उपयोगी है, रोगों के उपचार में ही केवल नहीं, रूप निखार में भी शुद्ध घी का सेवन विशेष महत्व रखता है । अपने सात्विक गुण के कारण, शुद्ध घी मानव के आध्यात्मिक विकास में भी सहायक है एवं सब धार्मिक व आध्यातमिक अनुष्ठानों में काम आता है । शुद्ध घी नियमित रूप से अपनाइये, खाईये, आंतरिक एवं बाह्य रूप से सुन्दर, स्वस्थ रह जीवन बिताइये ।

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